शनिवार, 23 जून 2012

कोई तो होता जिस पर  . . . . .


कोई तो होता जिसपर  दिल की किताब लिखते 
दीबाचे में तेरा ही सिर्फ तेरा नाम लिखते 
कोई तो होता जिस पर 


पहले ही हर्फ़ में अपने मोहब्बत का बयां लिखते 
जो कलम चलती आगे तो तेरा जिक्र-ए - जमाल लिखते .
कोई तो होता जिस पर 


अगली ही तहरीर में तेरी वो शगुफ्ता  सी तस्वीर खुलेआम लिखते 
बाते जो होती थी जुम्मेरात को, उन्हें हम इनाम लिखते
कोई तो होता जिस पर


तेरे रुखसारो पर उठे फिकरों का भी हम राज लिखते 
जो कोई होता तो वो तमाम कैफियत हम आज लिखते
कोई तो होता जिस पर


जो बातें कुछ और होती वो तेरा शर्मा के सिमट जाना 
वो तेरा इतरा के रूठ जाना भी लिखते 
कोई तो होता जिस पर


वो तेरी जुल्फों पर बनी गज़लों का हम अर्ज लिखते 
जो हिम्मत और बाकी होती तो पिछले स्याह पन्नो पे तेरा हिज्र लिखते
कोई तो होता जिस पर

आखिर में जो हमारा तखल्लुस पूछा जाता तो 
बस "आशिक गुमनाम" लिखते
कोई तो होता जिस पर



~"नीरज"~


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