रविवार, 3 जून 2012

यादें ...


अजीब सा राबता है यादों का इंसान से, जन्म से मरण तक यादें साथ चलती है और फिर यादे अमर हो जाती है | हर गुज़रा लम्हा एक याद है | यादें कुछ मीठी कुछ खट्टी कुछ कोमल कुछ कठोर | पर यादों की खुशबू बहुत मनमोहक होती है | कुछ पल के लिए इंसान को सबकुछ भुलाकर उसके माज़ी (past) से मिला देती है | वर्तमान की सूदबुद खो बैठता है इंसान | यादें जो गुज़रे लम्हे में पैदा होती है और वक़्त के साथ उम्रदराज़ होती जाती है | और धीरे धीरे यादों की छवि स्मृति में धुंधली होती जाती है | पर कुछ यादें चटख रंग की तरह हर दिन हर पल इन्सान की दिमाग में ताज़ा रहती है जो अपने आगमन के साथ एक ख़ुशी , एक चमक, एक लालिमा बिखेर देती है  इन्सान के चहरे पर उसके मानस पटल पर |
                  इंसान वक़्त के पीछे चलता है और इंसान के पीछे यादें | यादें ही है जो इंसान का साथ कभी नहीं छोडती |  देर - सवेर, भीड़ में , तन्हाई में , आ ही जाती है | और इंसान खो जाता है उन अतीत के लम्हों में एक बार फिर उन्हें जीने की कोशिश  में लग जाता  है | हालाँकि आज के भाग - दौड़ वाली सभ्यता में याद जैसी चीज़ के लिए समय नहीं है और ना ही दिमाग में इतनी जगह के उसे संजोया जा सके पर याद का नाता इंसान से कभी नहीं छुट सकता | वह कभी ना कभी किसी ना किसी तरह इंसान के ज़ेहन में अपनी दस्तक दे ही देती है |
                           वक़्त बीत जाने पर बस याद ही रह जाती है जैसे आग के जलने पर राख रह जाती है | आप भी याद कीजिये कोई मीठी सी याद, ऊपर लिखे लफ्जों के म'आनी (meaning) मिल जाएंगे आपको |

                                              ~"नीरज"~  

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