शनिवार, 18 अगस्त 2012

"गुलज़ार बाबा"



जब भी तुम्हे देखता हु,एक ही बात महसूस करता हु
ख्याल जैसे रुक से गये हैं
कायनात से सम्बन्ध  टूट से गये हैं
तहरीर हो तुम सी नहीं ही, बाबा
पर कैफियत तुम्हारी पकड़ने की कोशिश करता हूँ
तुम्हारी ख्यालों  की आंच में  अपने अध-पके से
तस्सव्वुर सेकता हूँ , बाबा
सफ़ेद लिबास में इतने रंग बिखेर जाते हो,बाबा
मैं समेटते समेटते दुनिया से मुक्तलिफ़ हो जाता हु
समेट कर सभी रंगों को झोली में,
फिर भी मुफलिस रह जाता हूँ ,बाबा
अब की बार जो जाओ तुम सरहद  पार मिलने मेहँदी हसन से,
तो मुझे भी साथ ले जाना,बाबा
सुना है सरहद पार ,अदब को सत्कार बहुत मिलता है
सुना है सरहद पार दिलो में प्यार का गुल खिलता है
सफ़ेद लिबास में खिलखिलाते,बाबा
तुम्हे जब देखता हु, आंखे पढने की कोशिश करता हूँ ,
तुम्हारे हाथो में कुछ तलाश करता हूँ
कहीं कोई सुराग मिल जाये, ख्याल आते कहाँ  से हैं
मुझे भी कोई मार्ग मिल जाये
इतना कैसे लिख लेते हो, तस्सव्वुर थकता नहीं तुम्हारा
उड़ेल देते हो हर ख्याल को कागज पर
और बन जाती है एक सुन्दर नज्म आखिर में जाकर
तुम्हारे महकते तस्सव्वुर के बाग़ को अक्सर निहारता हूँ
गुंचा-ओ-कली-ओ-फूल, पतिया सभी तरास कर सजाये है तुमने, बाबा
पेड़ों के  के ताने  भी मजबूत उगाये है तुमने
कोई कली  या पत्ती चुरा के सोचता हूँ
इससे अपनी बगिया मह्काऊँगा
फिर ख्याल आता है इसको चिपकाने वाला गूंद कहा से लाऊंगा
अब रातो को जागने का सबब दिया है तुमने, बाबा
चाँद तारों से गुफ्तगू करना सिखा दिया है तुमने, बाबा
अब रातो को तन्हाई महसूस नही होती
ज़माने की रुसवाई भी अब मायूस नहीं करती,बाबा
अक्सर चाँद तारो के बीच चला जाता हु
हाल उनका पूछने कुछ अपना बताता हु,बाबा
चाँद शिकायत करता  ही तारो से
तारे भी उलाहना देते है चाँद को
अमावस्या को ये चला जाता है मिलने अपने हबीब से
कहकशा भी  अब तो अपनी बुआ  लगती है
अब सुच में मुझे उसकी हर दुआ लगती है
सब तुम्हारी कही बाते याद आती है, बाबा
रातो को अक्सर तुम्हारी नज्मे आकर सुला जाती है,बाबा
इक तुम्ही हो जो न्यूयोर्क में भी चीटियों को दाना डालते हो,
पहाड़ों पर भी रात  का मज़ा लेते हो,
जुलाहे को अपनी बातो में बहला लेते हो,
बारिश को भी भिगो देते हो,
ब्रह्माण्ड को घुमा देते हो बाबा
इक तुम्ही हो जो मेरे अपने लगते हो,बाबा
आंधी में तुम नूर जलाये रखते हो
इक खुशबू की तरह जेहन को महका जाते हो
मौसम को मासूम बना देते हो,बाबा
मेरे मासूम सवालो से तुम परेशां तो होते हो
पर हैरान नहीं बाबा
दिल से दिल की किताब पढ़ते हो
इब्बे ग़ालिब लगते हो,बाबा
चप्पा चप्पा चरखा चलते हो
इस उम्र में भी इश्क फरमाते हो
क्योकि दिल को बच्चा बताते हो
और कजरारे नैनो वाली बबली चाहते हो बाबा
भारत का जय घोष दुनिया को सुनते हो बाबा
ग्रेमी  जैसे पुरस्कार तुम ही ला सकते हो बाबा
और सुनो
जंगल में फूल तो बहुत से खिलते हैं  पर
चड्डी पहन कर तुम ही खिलते हो बाबा
इक "बोस्की" ही तुम्हारी बेटी नहीं ही बाबा
तुम हमें भी अपने पिता ही लगते हो बाबा
त्रिवेणी कोई तुम सी लिखे तो मैं जानू
जो कोई खयालो में तुमसे जीत जाये तो मैं सिकंदर मानू
अब रोज सपनो में आते हो बाबा
क्योकि सपनो की सरहद कोई होती नहीं
और सपनो में ही मेरे जेहन को सहला जाये हो,बाबा
क्योकि सपनो में  appointment  की जरूरत नही होती
ग़ज़लजीत जो इक तुम्हारे यार होते ही बाबा
वो भी  कमाल के खुद्दार होते ही बाबा
अभ्र सा बरसते है वो रूह,दिल-ओ-दिमाग
सब तर कर जाते है
अब हम उनकी आवाज को तरसते है,बाबा
सुना है अब वो खुद की आरामगाह में
अपनी मीती आवाज़ में परवाज ओ मिराज सुनाया करते ही,बाबा
हजारो ख्वाहिशे होती नहीं बाबा
बस इक फरमाइश है मेरी,जो तुम मिल जाओ हक्कीकत में तो बस तुम्हारी बाहों में उम्र निकले ,बाबा
बात जो तुम्हारे होठो से निकलती है
वही पुरजोर लगती है ,बाबा
मैं तुम्हारी नज्मे संभल कर रखता हु
जैसे जेवर सम्भालता हो कोई
अबकी बार जो मिलूँगा तुमसे बाबा
पोटली भर के सवाल रखूंगा युम्हारे सामने,बाबा
मसलन गीत कैसे लिख लेते हो
काफिये को ग़ज़ल में कैसे कैद कर लेते हो
रदीफ़ ओ काफिये का खयालो से कैसे मेल करते हो,बाबा
और इक सवाल जो बचपन से मुझे झकझोर रहा है
ये चडी पहन के फूल कैसे खिलाते हो,बाबा
और इक जरुरी बात जो सिकना चाहुँगा
अलिफ़ पे वे कैसे चढ़ा देते हो बाबा
अपनी आवाज़ में कशिश कहा से लेट हो
और नाज़रीन की आँखे कैसे पढ़ पते हो बाबा


~"नीरज "~

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